मजदूर और मजबूरों के पलायन के दर्द पर न्यूज एंकर दीपेश बरगले की नजर
झोला, झंडा, गठरी लिए पटरी से फुटपाथ तक कोसों दूर चले जा रहे कामगारों की कहानियां कहीं दिलचस्प.. कहीं सराहनीय… तो कहीं प्रेरणाप्रद रही… मगर जब मजदूरों की इन्हीं मुसीबतों को मौत ने गले लगा लिया तो इन किस्सों में मातम के सिवा कुछ नजर ना आया…
लॉकडउन में मजदूरों की मजबूरी की कई तस्वीरें और कहानी आपने देखी सुनी और पढ़ी होगी… मगर आप अपने दिल पर पत्थर रखकर इन तस्वीरों को भी देखिए और पढ़िए पोथी पीड़ा की… देखिए रोते बिलखते इन बच्चों को… मासूमों की चितकार..और चीख पुकार को… इनके साथ कोरोना काल में कुदरत ने ऐसा खेल खेला कि सुनने वाला भी सन्न रह गया.. इन्हें देखने वाले का कलेजा मुंह को आ गया…तो सोचने समझने वालों की शक्ति शून्य हो गई… अंजानों से पहचान बना नर्स, डॉक्टर्स और जवानों की गोद में बेसुध पड़े इन बच्चों कें बदन पर उभरे जख्म रुह कंपा देने वाले हैं… मगर उससे कहीं ज्यादा हृदय विदारक है उनकी दर्द भरी दास्तां… मातम में मायूस मासूमों पर हुए बज्रपात ने उनकी दुनिया उजाड़ दी… छीन लिया वो एहसास जो उन्हें मां की ममता महसूस कराता था.. टूट गया वो साथ जो पिता के साए का आभास कराता था.. लुट गया वो हाथ जो उन्हे दुनिया घुमाता था…
ये बेसहारा अपने परिवार के सहारे ही तो निकले थे… मगर मंजिल से पहले बेसहारा हो गए… जिनके माता पिता दर्दनाक सड़क हादसे में काल के गाल में समा गए.. वो अब अनाथ हो गए… माटी को रौंध महल बनाने वाले मजदूरों को जब अपनी माटी की महक खींचने लगी तो वे काल चक्र में फंस कर असमय ही माटी में मिल गए…
बड़वानी में महाराष्ट्र से इंदौर जा रहे मजदूर परिवार पर कहर बन पलटे टैंकर ने मजदूर दंपती के साथ दो बच्चों की भी जीवन लीला समाप्त कर दी.. और बच गए तो 2 अभागे बच्चे जो मौत को मात देकर भी मातम मना रहे हैं… इस दौर में भी जब इन मासूमों को कोई अपना नहीं रहा था तब मसीहा बन मदद करने का बीड़ा बच्चों के मामा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उठाया और बच्चों के लिए अपनी झोली खोल 13 लाख की सहायता दे दी… मजदूरों की मौत और मासूमों की चोट पर मदद के मरहम की दरकार थी जो पूरी भी हुई.. मगर सड़क पर हुए जिन हादसों ने मासूमों की दुनिया बदल दी, उन सड़कों पर प्रवासी मजदूरों की बेबस अंतहीन कहानियां यहीं खत्म नहीं हुई…
सागर के बंडा अस्पताल में मसीहा बन मदद करने वाले कर्मचारियों का कलेजा भी तब भर आया, जब हादसे में मां को खो देने वाला रेहान अपने दादा की गोद में पहुंचा… हादसे में अपनी दुनिया लुट जाने से अंजान रेहान का मां की मृत देह के पास रोते दृष्य ने पूरे देश की आंखों को नम कर दिया.. दिल दहला दिया इन बिलखती तस्वीरों ने…झकझोर दिया मजबूर मजदूरो की मुसीबत, मौत और मातम ने… दर्द के अथाह दरिया में गोते लगाते मंजिल तक पहुंचने से पहले मौत की गहराई में उतरने के ये किस्से यहीं थम जाते तो भी ठीक था.. मगर जैसे जैसे मजदूरों के पैरों में पड़ी मजबूरी की बेडिय़ां तूटती गई… वैसे वैसे उनकी मौत की खबर भी आंकड़ों की मोहताज होती चली गई….
इक्का दुक्का मौतों से इतर मध्यप्रदेश की सड़कें तो मानों मौत की मंजिल बन गई… 6 से 16 मई तक ही महज 10 दिनों के अंदर अलग-अलग हादसों में 99 मजदूरों की जान चली गई तो 93 से ज्यादा मजदूर जख्मी भी हुए…मगर ये तो सिर्फ वो हादसे जो आपकी और हमारी नजर में आ गए…जिनमें मालगाड़ी की चपेट में आने वाले एमपी के 16 मजदूर भी शामिल हैं… इससे इतर भिंड में भी बाइक सवार 3 मजदूरों की ट्रक की टक्कर में मौत, गुना के बायपास पर दो वाहनों की भिड़ंत में 3 मजदूरों की मौत… 14 बुरी तरह जख्मी, तो वहीं इसी बायपास पर ट्रक-बस की टक्कर में 8 मजदूरों की मौत और तकरीबन 50 घायल हो गए…
इससे पहले एमपी के नरसिंहपुर में भी ट्रक पलटने से यूपी के 6 मजदूरों की मौत हो गई…. जब मध्यप्रदेश के आंकड़े ही बैचेनी भर देते हैं तो पूरे देश का हाल क्या होगा समझा जा सकता है… जितना ज्यादा आंकड़ों के आंकलन में उलझेंगे उतनी आंखें जड़ होती चली जाएंगी… ये मौत सिर्फ मजदूरों की नहीं हो सकती, ये मानवीयता की मौत है, ये मुकद्दर की मौत है, कोरोना काल की कुव्यवस्था में व्यवस्था की मौत है, झूठे सम्मान और माननियों के मान की मौत है… जो लॉकडाउन के सन्नाटे में सुन्न पड़ी सड़कों पर भी चीत्कार की चीख से चीर देती हैं कलेजा..
मजदूरों की बनाई यही सड़कें जो कभी मंजिल तक पहुचने का माध्यम हुआ करती थी… आज मौत से उपजे मातम की महानदी में बदलने लगी…तभी तो जिंदगी बनाने जबरिया जड़ों से जुदा हुआ मजदूर जब वापसी के लिए सड़को पर निकला तो अव्यवस्थाओं के थपेड़ों ने भी मुकद्दर में मौत दे दी.. जो कह रहीं हो मानो नियती ने भी मजदूर को मानव मानने से इंकार कर दिया है…
दीपेश बरगले
न्यूज 18 नेटवर्क में एंकर और पत्रकार