पौराणिक आख्यानों के अनुसार जब-जब धरती पर पाप बढ़ा त्रि-देव में से सृष्टि के पालनहार विष्णु ने ही अवतार लेकर उसका नाश किया। यह हैं कथा-कहानी की बातें। हकीकत में वीडी शर्मा के रूप में विष्णु अवतार हुआ है। वीडी यानी विष्णुदत्त। यही उनका पूरा नाम है। यह और बात है कि मध्यप्रदेश में पौराणिक आख्यान जैसी कोई स्थिति बनने को लेकर भाजपाई, कांग्रेसियों और आम जनता की अपनी-अपनी राय है। इतना अवश्य तय है कि सत्ता गंवाने के बाद भाजपा संगठन के लिहाज से जरूर ऐसी किसी स्थिति का अनुभव कर रही होगी।
49 साल के विष्णु को 15 साल की सत्ता गंवाने के बाद दिनोंदिन रसातल में जा रही मध्यप्रदेश भाजपा को विष्णु के वराह अवतार की भांति उबारने का जिम्मा पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने गहन विचार विमर्श के बाद सौंपा है। भाजपा में वैसे तो विष्णु को अवतरित हुए सिर्फ 7 सात साल ही हुए हैं, लेकिन उनके पास एबीवीपी में लंबे समय तक कार्य करने का तगड़ा अनुभव है। युवा नेतृत्व की जितनी विशेषज्ञता उनके पास है उतनी किसी भी हमउम्र लीडर में नहीं होगी।
करीब दो साल से राकेश सिंह (चंद्रमा का पर्यायवाची है राकेश) की छाया में पल रही प्रदेश भाजपा अब उनकी चांदनी से मुक्त हो विपक्षी दल के तौर पर अपना तेज दिखा पाएगी? भाजपा आलाकमान को यही संभावना शर्मा में दिखी होगी, तभी तमाम कयासों, सियासी, क्षेत्रीय एवं जातिगत समीकरणों को दरकिनार कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पक्के पूर्णकालिक रहे विष्णु को प्रदेशाध्यक्ष पद सौंपा गया है। शर्मा ने जितनी जीवटता से एबीवीपी में काम किया था किस्मत उतनी ही उन पर मेहरबान रही। तमाम बाधक तत्वों को धता बता कर भाजपा में आते ही वे प्रदेश महामंत्री बना दिए गए। पिछले विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की अविजित गोविंदपुरा सीट से उनका नाम इतनी वजनदारी से उभरा था कि इस सीट का टिकट तय करना मुश्किल हो गया था। संयोग या संपर्क देखिए, लोकसभा चुनाव में तीन-तीन सीट से वे दावेदार थे। इनमें एक सीट केंद्रीय मंत्री और दो बार प्रदेशाध्यक्ष रहे नरेंद्र सिंह तोमर की पसंदीदा मुरैना थी, जहां के शर्मा भी मूल निवासी हैं। तोमर को कहना पड़ गया था कि वे कहां से मैदान में होंगे, उन्हें ही नहीं पता। दूसरी सीट भोपाल थी, जहां से कांग्रेस के दिग्विजय सिंह के मैदान में आने पर भाजपा ने मालेगांव धमाके की आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को अचानक उतार कर कट्टर हिंदुत्व कार्ड खेला। प्रज्ञा भी विष्णुदत्त की तरह एबीवीपी में काम कर चुकी हैं। तीसरी सीट थी खजुराहो, जहां से वीडी को टिकिट मिला और बगैर पूर्व संपर्क के वे वहां से लाखों मतों के अंतर से जीते। खजुराहो के भी कई दिग्गज दावेदार थे।
वीडी शर्मा पर इस मेहरबानी की वजह संघ में उनकी गहरी पैठ है। यही पकड़ तमाम अवरोधों के बावजूद उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनवाने में कामयाब रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के आशीर्वाद के साथ एबीवीपी से ही भाजपा में पहुंचे राष्ट्रीय अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा का वरदहस्त तो उन पर था ही। अब उन पर दारोमदार है कि पार्टी को एक बार फिर विपक्षी भूमिका में सरकार को नाकों चने चबाने के लिए मजबूर करने वाली वह पुरानी भाजपा बनाएं, जिसके दम पर प्रदेश की जनता ने उसे वल्लभ भवन के ऊंचे आसन तक पहुंचाया था। राकेश सिंह के अध्यक्षीय कार्यकाल में भाजपा ने दो चुनाव लड़े थे। पहला विधानसभा का जिसमें भाजपा को पराजय मिली। दूसरा लोकसभा चुनाव था, जिसमें प्रदेश की 29 में से 28 सीटें जीतने का श्रेय उनके खाते में है। यह अलग बात है कि जैसे विधानसभा की हार के लिए तत्कालीन शिवराज सरकार को जिम्मेदार माना जाता है, वैसे ही लोकसभा की जीत का सेहरा मोदी और अमित शाह के सिर बंध गया। इस बीच हुए झाबुआ के विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने अपनी सीट गंवाई। अब वीडी के सामने जौरा और आगर के विधानसभा उपचुनाव हैं। इनमें से एक सीट भाजपा के खाते की है। नगरीय निकाय और पंचायतों के चुनाव भी उनके नेतृत्व मे ही होने हैं। यानी वीडी की परीक्षा की घड़ी सामने खड़ी है। अब उन पर है कि वे अपने पूर्ववर्ती से अगल हट कर संगठन को सड़क पर तगड़ा आंदोलन करने के लिए तैयार करते हैं या फिर प्रतीकात्मक प्रदर्शनों तक ही पार्टी सीमित रहेगी?
मध्यप्रदेश भाजपाध्यक्ष के चुनाव टलने से पहले तक प्रदेशाध्यक्ष पद के कई दावेदार थे। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, उनके कोटे से ओबीसी और दलित कार्ड वाले भूपेंद्र सिंह तथा लाल सिंह आर्य, पंडित नरोत्तम मिश्र, राजेंद्र शुक्ल, फग्गन सिंह कुलस्ते, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा जैसे नाम रेस में थे। चुनाव टलते ही निवर्तमान अध्यक्ष राकेश सिंह के रिपीट होने के कयास लगने लगे थे। राकेश भी आशान्वित थे। अब उनकी मानें तो सात दिन पहले नेतृत्व ने उन्हें इस फैसले से अवगत करा दिया था।
विष्णु के नए स्वरूप में सक्रिय होने का कांग्रेस पर जो असर पड़ेगा वो पड़ेगा, भाजपा में पीढ़ी परिवर्तन जरुर होगा। 13 साल तक मुख्यमंत्री रहते हुए प्रदेश भाजपा का पर्याय बन चुके शिवराज सिंह सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। शिवराज अपने नाम के अनुरुप औघड़ अंदाज में खुद को प्रदेश ही नहीं प्रदेश भाजपा का सृष्टिकर्ता मान कर फैसले लेते हैं। कई बार कार्यक्रमों को लेकर उनमें और राकेश सिंह में मतभेद भी दिखे थे। अब ऐसा न हो पाएगा। कुछ साल पहले शर्मा को भाजपा में बड़ी भूमिका में आने से रोकने का प्रयास जिन्होंने किया था, वे सब टीम शिवराज के मेंबर थे।
आलाकमान ने यदि युवाओं की लीडरी करने के अनुभव के आधार पर वीडी को कमान सौंपी है तो सरकार विरोधी तमाम आंदोलन अब प्रदेश संगठन की मंशा से ही होंगे। वीडी की टीम भी अपेक्षाकृत युवा ही होगी, जो सत्ताधारी कांग्रेस से लड़ने के लिए आवश्यक भी है। ऐसे में 15 साल तक राजप्रसाद में रहे वे कई नेता मार्गदर्शक मंडल की ओर धकेले जा सकते हैं, जो अभी तक प्रमुख भूमिका में खुद को दिखा रहे हैं। यही सब तो शिवराज ने भी किया था जब वे 46 साल की उम्र में प्रदेशाध्यक्ष से मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे थे। पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, सुंदरलाल पटवा, बाबूलाल गौर, रघुनंदन शर्मा जैसे उनके आदरणीय नेता संगठन के कार्यक्रमों में मंचीय शोभा की वस्तु बन कर रह गए थे। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के 10 साला दिग्विजयी शासन को उखाड़ कर भाजपा को सत्ता दिलाने वाली उमा भारती को तो निर्वासन झेलना पड़ा था। प्रदेश भाजपा का नया रंगरोगन कैसा होगा? नई टीम कितनी ऊर्जावान होगी और वह क्षत्रपति शिवाजी की तरह गुरिल्ला युद्ध करेगी या आमने-सामने की टक्कर देगी? खुलासा जल्दी ही हो जाएगा। अभी तो भाजपा में कई नेता सदमे में हैं, किसी को झटका लगा है तो कोई खुशी मना रहा है। आखिर पार्टी में विष्णु अवतार जो हुआ है।