- सुप्रीम कोर्ट ने AGR पर फिर दिया टेलीकॉम कंपनियों को झटका
- कंपनियों को करीब 1.47 लाख करोड़ का AGR बकाया चुकाना है
- इसकी वजह से टेलीकॉम कंपनियों को लगातार घाटा हो रहा है
सरकार द्वारा वसूले जाने वाले एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) की वजह से भारत की कई टेलीकॉम कंपनियां बर्बादी की कगार पर पहुंच गई हैं. वोडाफोन आइडिया को इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारतीय कॉरपोरेट इतिहास का सबसे ज्यादा 50,921 करोड़ रुपये का बड़ा घाटा हुआ है. तीसरी तिमाही में भी उसे 6,438 करोड़ का घाटा हुआ है. आखिर क्या है यह मसला, क्यों इससे तबाह हो रही हैं टेलीकॉम कंपनियां? आइए इसे समझते हैं.
क्या होता है AGR
एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) संचार मंत्रालय के दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से लिया जाने वाला यूजेज और लाइसेंसिग फीस है. इसके दो हिस्से होते हैं- स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज और लाइसेंसिंग फीस, जो क्रमश 3-5 फीसदी और 8 फीसदी होता है.
इसे भी पढ़ें: AGR पर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की कंपनियों और सरकार को फटकार- अदालत बंद कर दें?
क्या था विवाद
असल में दूरसंचार विभाग कहना था कि AGR की गणना किसी टेलीकॉम कंपनी को होने वाली संपूर्ण आय या रेवेन्यू के आधार पर होनी चाहिए, जिसमें डिपॉजिट इंट्रेस्ट और एसेट बिक्री जैसे गैर टेलीकॉम स्रोत से हुई आय भी शामिल हो. दूसरी तरफ, टेलीकॉम कंपनियों का कहना है कि AGR की गणना सिर्फ टेलीकॉम सेवाओं से होने वाली आय के आधार पर होनी चाहिए.
साल 2005 में सेल्युलर ऑपरेटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) ने एजीआर की गणना की सरकारी परिभाषा को चुनौती दी थी, लेकिन तब दूरसंचार विवाद समाधान और अपील न्यायाधिकरण (TDSAT) ने सरकार के रुख को वैध मानते हुए कंपनियों की आय में सभी तरह की प्राप्तियों को शामिल माना था.
क्या था सुप्रीम कोर्ट का आदेश
इसके बाद टेलीकॉम कंपनियों ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने भी 24 अक्टूबर, 2019 के अपने आदेश में दूरसंचार विभाग के रुख को सही ठहराया और सरकार को यह अधिकार दिया कि वह करीब 94,000 करोड़ रुपये की बकाया समायोजित ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) टेलीकॉम कंपनियों से वसूलें. ब्याज और जुर्माने के साथ यह करीब 1.47 लाख करोड़ रुपये हो जाता है.
इसे भी पढ़ें: बजट के बाद इकोनॉमी के लिए एक और बुरी खबर, औद्योगिक उत्पादन और घटा
कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों से तीन महीने के भीतर यह बकाया राशि जमा करने को कहा. कोर्ट ने इसके लिए 23 जनवरी, 2020 को अंतिम तिथि तय की थी. लेकिन अभी तक टेलीकॉम कंपनियों ने बकाया नहीं चुकाया है. इसीलिए शुक्रवार यानी 14 फरवरी को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर सरकार और टेलीकॉम कंपनियों को जमकर फटकार लगाई.
सुप्रीम कोर्ट ने संचार विभाग के वरिष्ठ अफसरों को जवाब देने के लिए कहा कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई क्यों न की जाए. यही नहीं ऐसे अफसरों और सभी टेलीकॉम कंपनियों के सीएमडी को 17 मार्च को कोर्ट की अवमानना मामले की सुनवाई का सामना करना पड़ेगा. सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना के लिए एयरटेल और वोडफोन आइडिया जैसी कंपनियों को कारण बताओ नोटिस भी दिया है.
यह टेलीकॉम कंपनियों के लिए एक बड़ा झटका है. अदालत ने सरकार और कंपनियों के वरिष्ठ अफसरों को कोर्ट की अवमानना का नोटिस भी दिया है.
एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया पर सबसे ज्यादा बोझ
इसकी सबसे ज्यादा मार एयरटेल और वोडाफोन आइडिया पर पड़ रही है. इस आदेश के मुताबिक बिना ब्याज और जुर्माने के एयरटेल को 21,682.13 करोड़ रुपये, वोडाफोन को 19,823.71 करोड़, रिलायंस कम्युनिकेशंस को 16,456.47 करोड़ रुपये और बीएसएनएल को 2,098.72 करोड़ रुपये देने हैं.
यही नहीं, PGCIL, RailTel, सभी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर, प्रसार भारती, सैटेलाइट कम्युनिकेशन प्रोवाइडर और केबल ऑपरेटर सहित 40 अन्य लाइसेंस धारक भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय AGR की परिभाषा में आएंगे. हालांकि, गैर टेलीकॉम कंपनियों से यह चार्ज किस तरह से लिया जाएगा, इस पर विचार किया जा रहा है.
बर्बाद हो रही कंपनियां
देश में जियो की चुनौती और अन्य कई वजहों से पहले से ही कई टेलीकॉम कंपनियों की हालत खराब थी, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का आदेश उनके लिए बड़ा झटका साबित हुआ है. खासकर टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन-आइडिया लिमिटेड और एयरटेल को एजीआर की वजह से बड़ा घाटा हुआ है.
इसकी वजह से वोडाफोन आइडिया को इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारतीय कॉरपोरेट इतिहास का सबसे ज्यादा 50,921 करोड़ रुपये का बड़ा घाटा हुआ था. तीसरी तिमाही के लिए गुरुवार यानी 13 फरवरी को जारी परिणाम के अनुसार वोडाफोन को 6,438.8 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है. कंपनी को लगातार छठे तिमाही भारी घाटा हुआ है.
एयरटेल को जुलाई-सितंबर, 2019 तिमाही में 23,045 करोड़ रुपये का बड़ा घाटा हुआ था. इसी तरह दिसंबर में खत्म तिमाही में उसे 1,035 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है.
घाटे की बड़ी वजह यह है कि कंपनियों को एजीआर के लिए प्रॉविजनिंग करनी पड़ रही है यानी एक तय राशि अलग रखनी पड़ रही है. वोडाफोन के मुख्य कार्यकारी (सीईओ) निक रीड का कहना है कि भारत में कारोबार लंबे समय से बेहद चुनौतीपूर्ण बना हुआ है. उन्होंने यहां तक कहा था कि सरकार से राहत नहीं मिली तो वोडाफोन भारत से अपना कारोबार समेट सकती है.
इसकी आंशिक भरपाई के लिए टेलीकॉम कंपनियां अपने टैरिफ में 40 से 50 फीसदी की बढ़त कर चुकी हैं. लेकिन इसकी भी एक सीमा है. जियो से मिलने वाले कड़े मुकाबले की वजह से ज्यादा टैरिफ बढ़ाना भी एयरटेल, आइडिया जैसी कंपनियों के लिए आत्मघाती हो सकता है.