Thursday, December 26, 2024
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फ्लाईओवर के नीचे ओपन कैंसर वार्ड और गम्भीर मरीज, एक खबर से पसीजी मुंबई

मुंबई। क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि नाक में नली लगा कर भोजन करने वाला कोई मरीज महीनों तक भारी ट्रैफिक और प्रदूषण के बीच रह कर अपना इलाज करा सकता है? या फिर पेट या मुंह की गम्भीर सर्जरी के बाद कोई कैंसर मरीज इन विषम परिस्थितियों में ठीक हो सकता है?
देश की सबसे बड़ी टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल के सैकड़ों मरीज इसी हालत में तंदरुस्त होने की उम्मीद पाले मुंबई में पड़े हैं।

परेल इलाके में स्थित यह अस्पताल मरीजों के लिए छोटी पड़ गई है। हर साल 65,000 नए मरीज और 4,50,000 पुराने मरीजों की आमद वाली इस अस्पताल के पास इतनी बड़ी तादाद में आ रहे रोगियों और उनके परिजनों के लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। इसलिए ऑपरेशन के बाद मरीजों को डिस्चार्ज कर दिया जाता है, लेकिन फॉलोअप के लिए उन्हें बार बार अस्पताल आना पड़ता है। दूसरे राज्यों से आने वाले गरीब मरीज और उनके परिजन वापस लौटने के बजाय मुम्बई में ही धर्मशाला में जगह तलाशते हैं। कहीं जगह नहीं मिली तो परेल का हिंदमाता ब्रिज उनका वार्ड बन जाता है। दोनों तरफ भारी ट्रैफिक वाले इस पुल के नीचे मरीजों को देख किसी अस्पताल के पोस्ट ऑपरेशन वार्ड की फीलिंग आती है। मुम्बई मिरर अखबार में इन मरीजों की खबर छपने के बाद मुम्बईकर और बीएमसी प्रशासन जागा। हिंदमाता पुल के नीचे से करीब 135 मरीजों को धर्मशाला और शेल्टर होम में शिफ्ट किया गया। सामाजिक संगठन भी इन मरीजों की मदद के लिए आए और उनके भोजन आदि का प्रबंध किया गया। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस समस्या का स्थायी हल निकाले बिना ऐसे मरीजों का भला नहीं हो सकता।

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