Saturday, March 15, 2025
HomestatesChhattisgarhछत्‍तीसगढ़ी में पढ़ें: पितरमन के प्रति सेवाभाव के पाख - 'पितर पाख'...

छत्‍तीसगढ़ी में पढ़ें: पितरमन के प्रति सेवाभाव के पाख – ‘पितर पाख’ | kawardha – News in Hindi

लेखक: धर्मेंद्र निर्मल

धार्मिक रीत रिवाज अउ परम्परामन ल मानना-मनाना हमर छत्तीसगढ़ के संस्कृति हरे. ए संस्कार अउ परम्परा ल हम अपन पूर्वज मन ले पाए हवन. उन्कर प्रति कृतज्ञता प्रगट करना हमर कर्तव्य बनथे. इही कर्तव्य अउ स्मरण भाव के निर्वहन पर्व ही पितृ पर्व के रूप म जाने जाथे. इही कर्तव्यबोध के निर्वहन अउ श्रध्दाभाव संग पूर्वज मन संपूर्ण विधि विधान से श्रध्दा सुमन अर्पित करना ही श्राध्द कहाथे.

कहे जाथे कि पितर पाख म श्रध्दापूर्वक निर्मल मन ले जउन दान करे जाथे, ओकर ले पूर्वज मन के आत्मा ल शान्ति अउ मुक्ति मिलथे. उही ल पिंडदान कहिथे. एह कुंवार महिना के कृष्ण पक्ष म मनाए जाथे जउन हँ पूरा पन्द्रा दिन के होथे अउ एला उही कारन ’पितर पाख’ के नाम से जाने जाथे. अइसे तो जउन पितर के देह त्याग जउन तिथि के होए रहिथे उही तिथि श्राध्द बर नियत होथे फेर पन्द्रा दिन ले जाने अनजाने जम्मो पितर मन ल सुरता करके तिलि, जवाॅ अउ कुश संग मंत्रोच्चार करके जल तर्पण करे जाथे. एला पिंडदान कहे जाथे.

एला घलोग पढ़ो: अड़बड़ सुग्‍घर लागथे छत्तीसगढ़ी भाखा के मुहावरा, कहावत अऊ लोकोक्तिपहिली दिन पितर बइसकी कहाथे. ए दिन आजा आजी जउन ल हमन दादा दादी कहिथन उन्कर श्राध्द होथे. पंचमी तिथि के उड़री अउ कुँवारी मनके श्राध्द होथे. नवमी तिथि के जम्मो माइलोगन, जउन मन पति के जीयत म सरग सिधारे रहिथे तउन मन ल श्राध्द दे जाथे उही कारन नवमी तिथि ल महतारी तिथि के नाम से घलो जानथे. इही प्रकार एकादसी अउ द्वास के श्राध्द ले संत सन्यासी, तेरस में नान्हे लइका, चतुर्दसी के श्राध्द ले अकाल मउत मरे जीव के आत्मा ल शांति मिलथे.

अमावस्या के दिन ’’सर्व पितृ मोक्ष’’ श्राध्द करे जाथे. पितर पाख भर म मनखे कहँू अपन कोनो पितर ल भूला जथे त उन अनजाने या भूले बिसरे पितर ल अमावस्या के दिन श्राध्द करे के विधान हवय. ए प्रकार ले कुल के जम्मो पितर मन के श्राध्द हो जाथे. इही सेति ए अमावस्या ल सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या के नाम से जाने जाथे अउ जेला हमर छत्तीसगढ़ी म ’’पितर खेदा’’ घलो कहिथन.

एला घलोग पढ़ो: जिहां के जुन्ना रंग-परंपरा के होथे दुनिया म बढ़ई, अइसन छत्तीसगढ़ के जानव मेला-मड़ई

अइसे मान्यता हवय कि ए पाख म पितर मन घर म आके पन्द्रा दिन ले हमरे संग निवास करथे. उन्कर स्वागत खातिर माइलोगन मन घर के दुवार अउ ओरवाती ल गोबर पानी म लीपथे जेला ओरी लीपना कहिथे. ओ लीपान उपर चाँउर पिसान के चँउक पूरके ओकर उपर पीढ़ा रखथे. पीढ़ा के दूनों ओर म कुम्हड़ा, रखिया नइ तो अउ कोन्हो फूल ल सजाके रखथे. तोरई पान म भींगे चाँउर अउ उड़द के दाल रखे जाथे. पीढ़ा उपर एक लोटा पानी म दातून ल रखके अपन पितर ल सुमरत हूम-धूप संग नेवता देथे कि हे पितर देवता आवव तृप्त होवव अउ हमर परिवार उपर अपन असीस के छइँहा बनाए रखव.

त उहेंचे दूसर कोति पितर तर्पन करइया मन नदिया तरिया म कुश, दूबी अउ तिल ल हाथ म लेके सुरूज देवता कोति मुँह करके अंजरी म जल भरके तर्पन करत पूर्वज मन के सुरता करत उन्कर मुक्ति के कामना करथे. तर्पन के काम ल घर के बड़े बेटा ही करथे छोटे मन नइ करय. ए दिन घर म तोरई के साग राँधे जाथे. बिन नून के उरीद दार के बरा बनथे. गुड़, घीं, बरा -सोंहारी के संगे संग अपन सकउ व्यंजन बनाए जाथे.

एला घलोग पढ़ो: छत्तीसगढ़ी फिलिम के वैश्विकरन, होगे डिजिटल सिनेमा के सुरूआत

पितर तर्पन म कुश के अबड़ महात्तम होथे. एकरे संगे संग तिलि, दूबी अउ चाँउर के घलो महात्तम होथे. उही प्रकार ए बेरा म भोजन म तोरई ल घलो महत्व दे जाथे, साग म तोरई के साग बनना जरूरी होथे. ओरवाती म तोरई के पान अउ फूल तो चढ़ाए जाथे अउ तर्पन के बेरा कुश नइ मिलय त तोरई पान के ही उपयोग करे जाथे. पितर पाख ल असुध्द या हड़हा पाख माने गे हवय. ए बेरा म श्राध्द या तर्पन देवइया लोगन मन पूरा पाख भर दाढ़ी मेछा नइ बनावय. नवा कपड़ा नइ पहिरय. नवा काम बूता सुरू नइ करय. माइलोगन मन चूरी नइ पहिरय. ए प्रकार ले हमर छत्तीसगढ़ म पितरमन ल घलो देवता मानके सम्मुख विधि विधान से श्राध्द करे के परम्परा हावय.




Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

RECENT COMMENTS

casino online slot depo 10k bonus new member slot bet 100 slot jepang
slot depo 10k