शेयर करें
जैसे जैसे हिन्दी पखवाड़ा के दिन आते हैं माड़साब को लगता है कि हिन्दी के ‛अच्छे दिन’ आने ही वाले हैं। इसी उम्मीद पर हर वर्ष माड्साब हिन्दी पखवाड़ा मनाते हैं। वह अपने छात्र-छात्राओं को निर्देश देते हैं, “सुनो रे छोरा-छोरी, इना सप्ताह सब हिन्दी दिवस मनाएँगे ओर इका विकास के लिए नयी नयी कहानी, कविता व निबंध लिखढ़ा है। साथ ही साथ हम सब के ‛शुद्ध हिन्दी’ भाषा में ही अपने काम व बातचीत करना है।”
हिन्दी नवाचार के नाम पर जुनी से नयी हिन्दी के सभी साहित्यकारों के साहित्य की धूल झाड़ी जाती है। हिन्दी के सभी पत्र-पत्रिकाओं द्वारा हिन्दी नव-उत्थान के लिए कोरस में हिन्दी नव गीत गाये जाते है। कुछ हिन्दी प्रेमी हिंदी की चिंदी करते रहते हैं और कुछ हिन्दी के झंडाबदर इस पर ढोल पिटते रहते हैं कि बिंदी कहाँ लगानी है।
इस पखवाड़े भर ऐसा लगता है जैसे विश्व में हिन्दी अपने शिखर पर है, पर कोई हरिश्चंद्र भारतेंदु नहीं जानता कि “हिन्दी भाषा” हमारी शिक्षा व शिक्षण व्यवस्था में कहाँ खड़ी है। सरकार के सभी कार्यालयों को केंद्रीय गृह मंत्रालय उसकी कार्य भाषा अंग्रेज़ी में निर्देश देता है कि सरकार के सभी विभाग ‛हिन्दी पखवाड़ा’ में हिन्दी भाषा में ही काम करेगें। भाषा पर बड़े-बड़े भाषण होते हैं। वही हिन्दी दिवस पर व्याख्यान माला में भाषा की स्थिति पर चर्चा कम और चाय-पानी की व्यवस्था पर अधिक बहस होती है।
माड़साब अपने विद्यालय में हिन्दी ज्ञान पर प्रतियोगिता आयोजित करते हैं और मातृभाषा का मान बढ़ाते हैं। ऐसा उन्हें लगता है। सरकार व माड्साब इस पखवाड़े भाषा के गुणगान करके अपने आप को गौरवान्वित समझते हैं।
हर वर्ष जिस तरह से अन्य वार-त्योहार मनाए जाते हैं, हिन्दी पखवाड़ा भी उसी तैयारी से धूमधाम से मनाया जाता रहा है। राष्ट्रीय एकीकरण की लुगदी लगाकर हर आम आदमी को हिन्दी का महत्व समझाया जाता है, लेकिन वहीं आम आदमी अब भी अपना बैंक खाता अंग्रेज़ी में ही फार्म भरकर खोलता है। भाषा की इस दुर्दशा पर हर आम हिन्दी प्रेमी का खून खौलता रहता है लेकिन सरकार व हिन्दी अकादमियाँ समय समय पर इस आम हिन्दी भाषा प्रेमी की भावनाओं पर हिन्दी साहित्य की पुस्तकें प्रकाशित कर ठंडा पानी डालती रहती हैं।
हर वर्ष हिन्दी पखवाड़े पर माड़साब के मन में हिन्दी के लिए ‛छायावाद’ छा जाता है। माड़साब इस पखवाड़े सरकार के सारे सरकारी काम-काज जैसे जनगणना, मतदाता सूची बनाना, स्वच्छता अभियान, महिला बाल विकास आदि काम छोड़कर हिन्दी के विकास में लग जाते हैं। जो माड़साब गाँव के विद्यालय में पढ़ाते हैं, वहाँ उनके छात्र विद्यालय में कम खेत-खलिहान पर ज्यादा मिलते हैं। जैसे तैसे माड़साब बच्चों को एकत्रित करके प्रतियोगिता सम्पन्न कराते है और हिन्दी भाषा की लाज रखते है।
माड़साब ने इस हिन्दी दिवस अपने क्षेत्र के एक मूर्धन्य हिन्दी साहित्यकार को अतिथि के रूप में बुलाया। ये साहित्यकार अपने आप को कवि कहते हैं लेकिन पूरे समय आलोचक का काम करते हैं। जिस तरह से हिन्दी की कई छोटी-बड़ी मुँह बोली बहनें है, उसी तरह ये कविवर हिन्दी के मुंबइया टाईप भाई बने फिरते हैं। कवि महोदय ने हिन्दी दिवस पर अपनी ही लिखी चार कविताएँ बच्चों को सुना दी। फिर अंत में बोले, “छात्रों इस पखवाड़े बस इतना। अगले पखवाड़े फिर ‛नयी कविता’ के साथ आपसे मिलूँगा।“ माड़साब को भी समझ नहीं आया कि बच्चे कितनी कविता समझे। अंत में अतिथि महोदय का विद्यालय के ही एक अतिथि माड्साब ने थैंक यू कहकर आभार प्रकट कर पखवाड़े से विदाई दी।
प्रतियोगिता का परिणाम यह रहा कि गाँव के लोगों को कई दिन बाद पता चला कि माड़साब जीवित है और गाँव में विद्यालय का भवन विद्या के लिए ही बना है जिसमें माड्साब सरकारी कार्यों से फुर्सत मिलते ही यदा कदा पढ़ाने भी आते हैं। उन पर इतनी जिम्मेदारी है कि उन्हें भाषा के साथ राष्ट्र का भी विकास करना है, लेकिन शासन के निर्देशों व चुनाव कार्यों से छुटकारा मिले तो पढ़ने-पढ़ाने का मूल कार्य करें।
खैर, प्रतियोगिता के अंत में माड़साब हिन्दी भाषा पर एक भावपूर्ण भाषण ने दिया। इसमें वह अपनी हिन्दी कविता के माध्यम से सभी रसों व छंदों का घालमेल करके बच्चों को घनचक्कर कर दिया।
लेखक – भूपेन्द्र भारतीय (@AdvBhupendra88)