निहितार्थ / प्रकाश भटनागर
लक्ष्मण सिंह (राजगढ़ और गुना में ‘छोटे राजा साब’ के सम्बोधन के स-आग्रह अधिकारी)हैं और जोरदार राजनेता। एक पत्रकार होने के नाते मेरा उनसे स्वार्थ यह है कि वह समय-समय पर खबरों के लायक रोचक मसाला उपलब्ध करवा देते हैं। पंद्रह महीने वाली अल्पायु की अपने ही दल वाली कमलनाथ सरकार की नाक में दम किये रहे। पार्टीगत निष्ठा के मामले में उस बेहद महीन विभाजक रेखा पर खड़े दिखे, जिसके एक ओर कांग्रेस तो दूसरी तरफ भाजपा है। तब उन्होंने कांग्रेस के लिए कुछ ऐसे-ऐसे अंदाज में चिंता की कि वह चिता सजाने वाले मामले से ज्यादा अलग नजर नहीं आयी। अब लक्ष्मण नामक अनुज को अपने भ्राताश्री यानी दिग्विजय सिंह की चिंता सता रही है। अंदाज खालिस, ‘तुम न जाने किस जहां में खो गए’ वाला है। दिग्विजय सिंह ने एक ट्वीट कर श्रमिक वर्ग की आड़ में भाजपा पर निशाना साधा। कांवड़ में अपनी बच्चियों को लेकर तेलंगाना से छत्तीसगढ़ पैदल जा रहे मजदूर की तस्वीर साझा की। साथ में ‘लाड़ली लक्ष्मी’ वाला नारा भी चस्पा कर दिया। इस पर अनुज ने प्रतिक्रिया दी
इस चिंतन के लिए भाई को सराहा और यह भी उलाहना जड़ दिया कि बड़े भैया राजनीति की चकाचौंध में न जाने कहां गुम हो गए थे। ‘वेलकम बैक’ वाली इस पोस्ट की वह लाइन खासी गौरतलब है, जिसमें लक्ष्मण ने भाई के लिए लिखा है, ‘लौट आइये, नहीं तो दुष्ट आपको निचोड़ते जाएंगे।’ यानी इस ट्वीट के मुताबिक जयेष्ठ भ्राता सियासी जंगल से घर वापसी का अभी आधा रास्ता ही तय कर सके हैं। वे अब भी जंगल में बसी उन ‘दुष्टो’ की रहगुजर से बहुत दूर नहीं आये हैं, जो उन्हें निचोड़ निचोड़ रहे हैं। अब दुष्टों की इस श्रेणी में किस-किस को रखा जाए, यह टेढ़ी खीर वाला मामला है। अपराध से जुड़ी फिल्मों और धारावाहिकों में बहुधा लिखा जाता है कि मामला तो सत्य घटना पर आधारित है, किन्तु पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं। किसी को निचोड़ना भी अपराध ही है। इसी क्राइम थ्रिलर में छोटे सिंह ने बड़े सिंह से जुड़े सारे पात्रों के नाम बड़ी खूबी से छिपा लिए हैं। अब मीडिया परेशान है। कौन हैं ये दुष्ट? पूछने के लिए फोन लगाया तो लक्ष्मण का मुआ मोबाइल फोन ही बंद मिला।
लेकिन मेरे लिए मामला बहुत गंभीर है। वह यह कि आखिर ऐसा कौन हो गया, जोदिग्विजय जैसी शख्सियत को निचोड़ने की क्षमता रखता हो। मैं एक बारगी इस खबर पर यकीन कर सकता हूं कि किसी वृक्ष ने अमरबेल का रस चूसकर उसे सुखा दिया हो, यह गप्प भी सच मानकर स्वीकार सकता हूं कि बकरियां किसी शेर का आखेट करने लगी हैं। लेकिन यह कभी भी हलक के नीचे नहीं उतार पाऊंगा कि किसी अशुभचिन्तक की इतनी हैसियत हो जाए कि उसे दिग्विजय के सामने ‘दुष्ट’ की उपमा दी जा सके। साक्षात भगवान गंगाजल हाथ में लेकर कसम खाएं, तब भी मैं यह नहीं मान सकता कि किसी जीते-जागते शख्स में दिग्विजय को निचोड़ने की ताकत है। राजनीति के कब्रिस्तान पर एक नजर मारकर देख लीजिये। अपने-पराये (पार्टी के लिहाज से) दोनों ही स्तर के अनेक ऐसे शव आपको वहां दिख जाएंगे, जो जटायु की तरह किसी राम के सामने ‘दिग्विजय-दिग्विजय’ का चीत्कार करने की कामना लिए ही सियासी जगत से फना हो गए।
राजनीति की वाटिका में चले जाइये, वहां भी आपको अनेक ऐसे नाम नीबू से भी बुरी तरह निचोड़ कर बेकार कर दिए गए कांग्रेसी दिखेंगे, जिनके सूखकर काले हो चुके छिलकों पर राघोगढ़ के राजा के फिंगर प्रिंट ही दिखेंगे। तो ऐसे चक्रवर्ती को कोई और निचोड़ सके, ऐसा तो केवल तब ही हो सकता है, जब परमात्मा को यकायक यह ख्याल आ जाए कि इस वसुंधरा को उसने अब तक सर्वाधिक दुष्ट व्यक्ति तो प्रदान ही नहीं किया है। बाकी तो अब तक ऐसा कोई पैदा ही नहीं हुआ, जो दिग्विजय से पार पा सके। दिवंगत हजारीलाल रघुवंशी ने एक मर्तबा विधानसभा में दर्द उगला था। कहा था कि राजा (तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय) अपने मंत्री और पटरानियों के साथ आगे की लाइन में बैठे हैं, जबकि उन (रघुवंशी) सहित अन्य बुजुर्ग नेताओं को पीछे कर दिया गया है। आज का माहौल आंख खोलकर देख लीजिये। क्या बुजुर्ग और क्या जवान, कांग्रेस में तो जो दिग्विजय की नजर में खटका, वो फिर राह से ऐसा भटका कि फिर कहीं का भी नहीं रह सका। यदि आप ज्योतिरादित्य सिंधिया को इसका अपवाद मानते है तो आप गलत हैं।
क्योंकि दिग्विजय ने ही सिंधिया को बगावत के उस रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए मजबूर कर दिया, जिस रास्ते के पीछे मध्यप्रदेश कांग्रेस में खानदानी युवा नेतृत्व के तौर पर अब जयवर्धन सिंह (दिग्विजय के सुपुत्र) ही शेष रह गए दिखते हैं। यानी सिंधिया का दल-बदल भले ही पूरी कांग्रेस सहित उसकी राज्य सरकार के लिए अपार शोक का प्रतीक बन गया हो, लेकिन दिग्विजय के लिए इसे मुनाफे का सौदा ही बताया जा रहा है। यह तय है कि लक्ष्मण सिंह ‘दुष्टों के नाम का खुलासा करने की स्थिति में नहीं हैं। ये तो उस निराकार स्वरुप का मामला है, जिसमें साकार स्वरुप का कोई सवाल ही नहीं उठता है। हां, यह मुमकिन है कि लक्ष्मण ने जिनके लिए यह शब्द इस्तेमाल किया है, वे खुद लक्ष्मण के लिहाज से वाकई दुष्ट हों. क्योंकि किसी का छोटा भाई होने से ही उस जैसी क्षमताएं मिल जाना जरूरी नहीं होता है। इसलिए दिग्विजय के सामने किसी दुष्ट के अस्तित्व की कल्पना भी न कर सकने के बावजूद इस मामले में लक्षमण को निरापद नहीं माना जा सकता है। इसलिए लक्ष्मण सिंह से यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि दुष्टों के नाम क्या हैं7 उनसे यही पूछना समझदारी होगा कि, ‘आप उन दुष्टों की ही बात कर रहे हैं ना जिनकी दुष्टता से आप बुरी तरह से परेशान हैं?’ निश्चित मानिए, एक झटके में सारे नाम आपको पता चल जाएंगे।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।
(वेबख़बर.कॉम से साभार)